बुन्देलखण्ड का सुनहरा सुनवाहा -डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज'

बुन्देलखण्ड का सुनहरा सुनवाहा -डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज'


बुन्देलखण्ड में एक “सुनवाहा” ग्राम है, इसका इतिहास भी सुनहरा है। सुनवाहा की तहसील जिावर, जिला-छतरपुर है। यहां से विजावर लगभग २२ किलोमीटर, छतरपुर ६५ किलोमीटर, सागर ६५ किलोमीटर, शाहगढ़ १५ किलोमीटर दूरी पर हैं। निकट का रेलवे स्टेशन सागर व दमोह है। यहां पहले जैन समाज के ४० परिवार विशेषतः गोलापूर्व जैनों के थे, अब दस परिवार ही यहां हैं। व्यापार व शिक्षा के अधिक साधन नहीं होने के कारण तथा शासकीय सेवाओं के निमित्त से यहां से अन्य नगरोंः - शाहगढ़, सागर, इन्दौर, भिलाई, सतना, भिलाई, भोपाल, बालाघाट, शिवनी आदि में अपना स्थाई निवास बना लिया। यहां खाग, चौंसरा, फुसकेले, टेंटवार, सांधेले परिवारके जैन समाज के परिवार रहते आये हैं। ३० -३२ परिवारों की नामशः जानकारी प्रा.सुरेन्द्रजी भगवां द्वारा संग्रहीत गोलापूर्व जैन निर्देशिका में प्रकाशित हैं।


अकलंक दिगम्बर जैन पाठशाला


सुनवाहा में संवत् २००४ में क्षुल्लक श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी पधारे थे, जिन्होंने यहां “अकलंक दिगम्बर जैन पाठशाला" खुलवाई थी। इस कारण यहां प्रारंभिक धार्मिक शिक्षा व संस्कार प्राप्त कर अनेक विद्वान् निकले हैं। बाद की पीढ़ी में भी शासकीय सेवा में श्री सुरेश जी जैन आईएएस. का नाम जैन समाज के मुकुटमणिवत् परिगणित होता है। ब्र. विनय भैया जीभोपाल, पं. दयाचंदजी शास्त्री, पं. सुरेन्द्र जी जैन दिल्ली, डॉप्रकाशचंद्र जी जैन इन्दौर, डॉ. अरविन्द कुमार जैन- इन्दौर, पंधर्मचंद जैन-इन्दौर आदि हैं। अभी यहां अभी 'मरुदेवी दि. जैन पाठशाला' संचालित है। 


श्री महावीर दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर-


सुनवाहा ग्राम में वर्तमान में श्री दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर है, यह शिखरवंद मंदिर है जो संवत् १६१० में निर्मित हुआ है। कहते हैं उसी स्थान पर पुराना खपरैल के मकान में गुजराती मंदिर (चैत्यालय) था। इस चैत्यालय में प्राचीन भगवान आदिनाथ (वृषभ चिह्न) की अष्टधातु की मूल नायक भगवान के रूप में प्रतिमा थी जो अब इस शिखरवंद मंदिर जी में स्थापित हैयहां पांच कमरे की धर्मशाला है,


मंदिर जी में कुल १७ प्रतिमाएं विराजित हैं। सुरेन्द्र जी की निर्देशिका में १६ प्रतिमाओं की जानकारी है। यहां की कुछ प्रतिमाओं का परिचय दिया जा रहा है। इनमें एक पाषाण की पद्मासन प्रतिमा संवत् १५४८ की जीवराज पापड़ीवाल की है और एक उल्लेखनीय प्रतिमा जो लगभग ढाई इंच की धातु की सर्पफणांकित प्रतिमा है उसमें भी प्रशस्ति है और संवत स्पष्ट १६४५ अंकित है। अनेकों प्राचीन यंत्र स्थापित हैं।


श्री धर्मचंद्र जी सुनवाहा ने हमें मूर्तियों के फोटो व श्री अजित जी के वाट्सएप के संक्षिप्त परिचय का भी हमने यहां उपयोग किया है।