एक युग के बाद आचार्यश्री विद्यासागर जी इन्दौर उमड़ा अपार जन-शैलाव

एक युग के बाद आचार्यश्री विद्यासागर जी इन्दौर में, उमड़ा अपार जन-शैलाव


        बीस वर्ष बाद आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज का बहुप्रतीक्षित पदार्पण दिनांक ५ जनवरी २०२० को बंगाली चौराहा के निकट उदयनगर दि. जैन मंदिर में हुआ। आपकी अगवानी के लिए अपार जन शैलाव उमड़ पड़ा। हर कोई अपनी आखों से सदी के महान सन्त की एक झलक पाना चाह रहा था। आचार्यश्री के एक शिष्य मुनि श्री विशद्सागरजी महाराज जो पहले से ही इन्दौर में विहारस्थ थे उनके साथ आचार्यश्री को समर्पित ८५ वर्षीय वयोवृद्ध विद्वान् पं. रतनलाल जी व उदासीन आश्रम के अधिष्ठाता ब्र. अनिल भैया जी, सभी ब्रह्मचारी भैयाजी के साथ, श्री अ. भा. दि. जैन विद्वत् परिषद् के महामंत्री डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज', इन्दौर, जैन समाज सामाजिक संस्था के प्रमुख प्रदीपकुमार सिंह कासलीवाल, डी.के.जैन आदि अनेक सामाजिक संस्थाओं के संस्थाध्यक्ष अपने साथियों, स्वजनों के साथ आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज ससंघ की अगवानी के लिये पहुंचे। अनेकों स्थानों पर श्रद्धालुओं ने रंगोलियां बना रखीं थीं। पादप्रक्षालन के लिये प्रासुक जल-कलश महिलाओं के हाथों में थे। आचार्यश्री के आने के मार्ग में पड़ने वाले मकानों की छतों पर भी लोगों का हुजूम दर्शनीय था। विशेषकर युवाओं में बहुत ही उत्साह था, वे सब अपने आवश्यक कार्य छोड़कर आचार्यश्री की अगवानी के लिए दौड़ पड़े। युवाओं में पत्रकार अनुभव जैन, पारस जैन, सारांश जैन, कु. अनुष्का जैन, कु.आकांक्षा, कु. काजोल आदि प्रमुख थे। आचार्यश्री ने अपने प्रथम उद्बोधन में कहा कि मैं शायद एक माह पूर्व ही इन्दौर पहुंचने वाला था किन्तु लगता है इन्दौर वालों का उस समय पुण्य प्रबल नहीं था। प्रतिभास्थली और प्रतिभा प्रतीक्षा की प्रतिभाओं से मिलकर आचार्यश्री बहुत प्रसन्न दिखे और इन्दौर में पहले दिन का आचार्यश्री का आहार प्रतिभास्थली की प्रतिभाओं/छात्राओं द्वारा ही हुआ


की प्रतिभाओं/छात्राओं द्वारा ही हुआसंस्कारों से सूर्य के समान आलौकित करेंगे प्रतिभा-स्थल दूसरे दिन आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा कि प्रतिभा तो सभी के पास होती है। उनमें आभा भी होती है, किन्तु प्रतिभा-स्थली में अध्ययनरत छात्राओं की प्रतिभाओं की बात अनूठी इसलिए मानी जा रही है, क्योंकि इनमें संस्कार शामिल होते हैंजैसे बादल छंटने से आलोक चारों ओर फैल जाता है, उसी तरह संस्कार के माध्यम से आलौकित करने का यह स्थान बनाया जा रहा है। समाज ने इस कार्य को अल्प समय में मूर्त रूप दिया है। उन्होंने कहा- दान देने वाले अपने-अपने काम में लग जाएंगे, लेकिन काम करने वाले सो भी नहीं सकेंगे। सोने का मतलब यह होता है कि जब कोई काम नहीं रहता है तो निद्रा आने लगती है, लेकिन आप लोगों ने ऐसा काम ले लिया है कि अब विश्राम नहीं ले पाओगे, क्योंकि ये कार्य सोता नहीं है। संघ प्रमुख भागवत ने आचार्य विद्यासागर से आशीर्वाद लिया, हथकरघा के संबंध में चर्चा की संघ प्रमुख मोहन भागवत मंगलवार दोपहर आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का आशीर्वाद लेने पहुंचे। आचार्यश्री से उन्होंने कई विषयों पर विस्तार से चर्चा की। आचार्य श्री ने उनसे कहा देश के विकास के लिए हथकरघा का बड़ा महत्व है। उन्होंने कहा जेल मे बन्द कैदियों के पुनर्वास के लिए हथकरघा का प्रयोग उनके जीवन को बदल सकता है। इसके लिए सरकार की ओर से पुनर्वास योजना बनाना जरूरी है। इस पर भागवत ने कहा इस पर सरकार ने सोचा नहीं, आपका यह प्रयास अनुमोदनीय है। संघ इस काम में पूरा सहयोग करेगा। वहीं आचार्यश्री ने संघ प्रमुख से हिंदी को प्राथमिकता देने की बात कही। आचार्यश्री ने कहा मैं अंग्रेजी का विरोधी नहीं हूं, लेकिन मातृभाषा हिंदी को सभी जगह प्राथमिकता देना जरूरी है। अभी १२ राज्यों में हिदी भाषा बोली जा रही है। इसे बढ़ाने का प्रयास जरूरी है।


-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज'