चमत्कृत भक्तामर स्तोत्र और उसकी विचित्र लेखन कथा

चमत्कृत भक्तामर स्तोत्र और उसकी विचित्र लेखन कथा




. स्तुति-स्तोत्रों की रचना प्रायः विशेष उद्देश्यों को लेकर हुई है। जब जब किसी महान व्यक्ति पर संकट आया उन्होंने अपने इष्टदेव का स्मरण किया और संकट से निवारण हेतु उनकी स्तुति की है। जैन संस्कृति में भी यही इतिहास प्राप्त होता है कि अनेक महान आत्माओं पर संकट आये और उन्होंने जिनस्तुति की है। समन्तभद्र स्वामी ने जिनेन्द्र भ्क्ति दर्शाने के लिए सहस्रनाम स्तोत्र की रचना की और पाषाण पिण्ड में से चन्द्रप्रभ भगवान की प्रतिमा प्रकट हुई। धनंजय कवि ने स्तुति करके सर्प विष दूर किया। मानतुंगाचार्य को अड़तालीस तालों के अन्दर बंद कर दिया गया था तथा बेड़ियों से जकड़ दिया गया था। उन्होंने जिनेन्द्र स्तुति में 48 काव्यों की रचना की। जैसे जैसे वे काव्यों को पढ़ते गये, एक एक द्वार के ताले टूटते गये। यह रचना भक्तामर नाम से प्रसिद्ध हुई। यह बात सनावत में विराजमान आचार्य श्री प्रणाम सागर जी मुनिमहाराज के 48वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक बेबिनार में डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’ ने कही। बेबिनार के प्रारंभिक वक्तव्य में मुख्य अतिथि डाॅ. सुशीलचंद जैन मैनपुरी में ने भक्तामर स्तोत्र की महिमा बताते हुए कहा कि यह स्तोत्र पहले प्रासंगिक था, आज है और आगे भी उपयोगी रहेगा। क्योंकि यह अपने आप में चमत्कृत है। इससे अनेक रोग दूर होते हैं। यह इहलौकिक सुख और पारलौकिक कामना का सिद्धि-साधन है। डाॅ. सनतकुमार जैन-जयपुर ने इस स्तोत्र के रचना संबन्धी परिस्थितियों और इसके वैचित्र्य को निरूपित किया। इन्होंने बताया कि इस स्तोत्र के एक एक काव्य के यंत्र हैं, प्रत्येक से अलग अलग सिद्धियां हैं। डाॅ. सुशील जैन-कुरावली ने इस स्तोत्र के प्रसिद्ध व पारंपरिक 48 काव्यों के अतिरिक्त चार और काव्यों पर प्रकाश डाल और उनके प्रभावों की जानकारी दी तथा बताया कि इसमें आदिनाथ भगवान की स्तुति है और प्रारंभ में इसमें भक्तामर शब्द आने से यह भक्तामर स्तोत्र के नाम से विख्यात है। डाॅ. सोनल जैन शास्त्री-दिल्ली ने भक्तामर स्तोत्र के व्याकरण पक्ष को उजागर किया। आपने बताया कि  इस स्तोत्र का पूजा विधान भी है जिसे नवीन ग्रहप्रवेश आदि के समय जैन परम्परा के लोग करते हैं तथा 24 घण्टे का अखण्ड पाठ भी लोग करते हैं। जैनों के श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों संप्रदायों में समान रूप से इसका महत्व है। डाॅ. लोकेश जैन-गनोडा ने संस्कृत भाषा में ही वक्तव्य देते हुए भक्तामर स्तोत्र पर प्रकाश डाला। बेबिनार की अध्यक्षा डाॅ. नीलम जैन-पुणे ने सभी के विद्वानों के द्वारा पठित आलेखों की समीक्षा की और पूज्य आचार्य प्रणाम सागर जी महाराज के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आचार्यश्री ने भक्तामर स्तोत्र की रचनास्थली धार-मानतुंगगिरी व नालछा के निकट के एक पुरातात्विक महत्व के स्थान पर एक वर्ष तक साधना करके किस तरह कई उपलब्धियां हासिल कीं हैं। इस बेबिनार की संयोजिका व संचालिका डाॅ. ममता जैन ने अंत में सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।

-अनुभव जैन, इन्दौर 845889992, anubhavjain2360@gmail.com