मानवीय मूल्यों को अनदेखा कर चमकदार चीजें ही अच्छी लगती है


- आचार्य पुलक सागरजी

मोहन कॉलोनी स्थित भगवान आदिनाथ मंदिर में आचार्य पुलक सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन के माध्यम से बताया कि भौतिक प्रगति की प्रतिस्पर्धा के युग में आध्यात्मिक और मानवीय मूल्यों को अनदेखा कर दिया है। केवल ऊपर से चमकदार लेकिन अंदर से खोखली वस्तुओं को खूब जमा कर लिया है। सत्यता है कि तुमने जितना कुछ पा लिया उससे कहीं ज्यादा खो दिया। तुमने जो सबसे अनमोल चीज खोई है वह हैं संस्कार। तुम्हारा प्रश्न हो सकता है कि संस्कार क्यों खोए तो मेरा जवाब होगा कि आपने खानपान की अशुद्धता व नियमित नियम विरुद्ध के कारण ही संस्कारों से विमुख हुए हैं। इसी कारण हमारी नैतिक मूल्यों में गिरावट आई गई है। क्या खायें, कैसे खाएं, कब खाएं जब तुम इन तीन बातों का गणित समझ लोगे तो ना कभी शरीर अस्वस्थ होगा और ना मन असंतुलित होगा। शुद्ध भोजन करते समय आसन लगाकर बैठे, खड़े होकर ना खाएं और भोजन के समय भी ख्याल रखें। अपने जीवन में कड़ाई से सूर्यास्त के उपरांत भोजन निषेध का नियम बना ले, जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आएगा हैं। हमारे सोचने समझने का तरीका भी बदल जाता है। आचार्य जी ने कहा कि भोजन करने की तीन पद्धतियां है भोजन ग्रहण करना, आहार करना और चरना। लोग भोजन ग्रहण करते हैं साधु संत आहार ग्रहण करते हैं और पशु भोजन चरते हैं। अभी तुमने अपने बारे में आंकलन करना है इनमें से किस श्रेणी में आते हो।
आचार्य जी ने कहा कि तुम भोजन ग्रहण करते हो तब तक बात ठीक है, लेकिन अभी तुम भोजन चरते हो तो चिंताजनक विषय है। तुमने जानबूझकर स्वयं को पशुओं की श्रेणी में ला खड़ा कर दिया है। ऐसे लोगों के नियम का पालन नहीं कर सकते तो भोजन करने की परिपाटी अपने जीवन में जरूरी है। भोजन में नियम का पालन करने लग गए उस दिन तुम्हें सच्चे इंसान हो जाओगे। आचार्य जी ने कहा कि बचपन से सुनता आ रहा हूं जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन। आचार्य जी ने कहा कि तुम्हारा रेडीमेड प्रेम यहां तक पहुंच गया। भोजन भी घरों में होटल से आने लगा है। जब बच्चा मां के हाथ का खाना खाता है तो उसका प्रभाव होता है। लेकिन अब पैकेट थमा दिए जाते हैं। परिश्रम से बचने के लिए मां अपने बच्चों को भोजन लगाने वाला रेडीमेड खाना खिलाती हैं।
संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया रामगंजमंडी