सम्यक्दर्शन अर्थात् सच्चे देव-शास्त्र-गुरु पर सच्ची श्रद्धा ही मनुष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण व उपकारी है। पढ़ना, समझना और लिखना इतना जरूरी नहीं जितना परमात्मा, धर्म या गुरु में विश्वास जरूरी है। आराधना विश्वास के बल पर होती है। भेद विज्ञानी के आगे 11 अंग, नौ पूर्व का ज्ञाता भी तुच्छ है। कोरा ज्ञान कीमत नहीं रखता। हितकर कार्य करें, जिससे उपलब्धि मिले। अध्ययन से सम्मान व ज्ञान मिलेगा। प्रशंसा के लिए किया गया कार्य सफलता नहीं देता। ये विचार भिण्ड में ससंघ विराजमान परमपूज्य राष्ट्रसंत गाणाचार्य १०८ श्री विरागसागर जी महाराज ने व्यक्त किये। आपने अपने मंगलमय उद्बोधन में आगे कहा कि धर्म का स्वाद व आनंद श्रद्धालु ही ले सकता है। दृष्टि व श्रद्धा सही रखें तो परमात्मा मिलेंगे। नंबर एक का लेवल लगाने से वस्तु नंबर दो की ही रहेगी, नंबर एक की नहीं हो जाएगी। अनपढ़ भी पढ़े लिखों से ज्यादा सम्मान पा सकता है। बरसों लगते हैं विश्वास जमाने में, पर तोड़ने में एक क्षण भी नहीं। सम्यक्दृष्टि की यही भावना रहती है। ‘अंत समय में भगवान को न भूल जाऊं’ शब्द रटते रहने से भाव सुधर नहीं पाते। बार-बार भावना भाने से कार्य पूरा होता है। गुरु आज्ञा शिरोधार्य करने वाला मुक्ति नियम से पाता है। सारी कला, विद्या, ज्ञान, प्रतिभा, उपलब्धि, गुरुभक्ति व सेवा से सर्व सुख मिलते हैं। कमजोर व्यक्ति विचलित होते हैं। चर्यावान ही चर्यावानों को जोड़ने वाला है। उत्साह से उत्साह बढ़ता है। उदासी व निराशा या नकारात्मक सोच से कभी मन-मस्तिष्क नहीं भरना। पढ़ें पर मन में उतारें। तभी पढ़ना सार्थक है। नए युग का आह्वान करते हैं कि कदमों में इतनी ताकत भरे कि कांटे भी चुभें तो उफ ना करते हुए रास्ते पर आगे बढ़ें और अंत में लक्ष्य को प्राप्त कर लें।
-डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर 9826091247
सच्ची श्रद्धा ही हमारी उपकारी है - गणाचार्य विरागसागर