राष्ट्रीय विद्वत् गोष्ठी यरनाल में सम्पन्न

चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागरजी पर बृहद्


 यरनाल। चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज मुनि दीक्षा शताब्दी महोत्सव के अवसर पर राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी दिनांक 27 से 30 दिसम्बर 2019 में संपन्न हुई। मंगल सान्निध्य वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टाचार्य आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज का रहा। कुशल नेतृत्व स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामी जी श्रवणबेलगोला ने प्रदान किया। सारस्वत अतिथि स्वस्तिश्री देवेंद्रकीर्ति भट्टारक स्वामी जी हुमचा रहे। जिनसेन भट्ठारक स्वामी जी नांदिनी आदि समस्त भट्ठारक स्वामीजियों को भी आमंत्रित किया गया था। इस संगोष्ठी में 93 विद्वानों ने भाग लिया। पांच पुस्तकों, तीन पत्र-पत्रिकाओं का विमोचन किया गया। चारित्र चक्रवती स्मृतिग्रन्थ निकालने का संकल्प किया गया और स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामी का अभिवंदन ग्रन्थ प्रकाशित करने की उद्घोषणा की गई। आयोजन समिति के सदस्य प्रतिष्ठाचार्य पं. विनोदकुमार जी रजवांस ने धन्यबाद ज्ञापन किया।
 उद्घाटन सत्र दिनांक 27 दिसंबर 2019 को प्रातः 10: 30 से हुआ। सर्वप्रथम आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज ससंग के साथ आगत सभी विद्वान्, अतिथि व जन सामान्य एक विशाल शोभायात्रा के साथ सभामंडप पर पहुंचे। पहले ध्वजारोहण हुआ, इसके बाद फीता खोलकर मंडप का लोकार्पण हुआ, तत्पश्चात उद्घाटन सत्र प्रारंभ हुआ। विद्वत् सम्मेलन के सर्वाध्यक्ष डाॅ. श्रेयांशकुमार जैन बड़ौत थे, सत्र का संचालन डाॅ. अनुपम जैन ने किया।
 सर्वप्रथम मंगलाचरण डाॅ. सुशीलचंद्र जैन-मैनपुरी ने किया, अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन किया, तदुपरान्त आचार्यश्री का पादप्रक्षालन व शास्त्र भेंट किया विद्वानों ने किया। स्वागतगान नन्हीं नन्हीं बालिकाओं ने णमोकार-गीत नृत्य प्रस्तुति के साथ किया। इस सत्र के असम केंद्रीय विश्वविद्यालय तेजपुर असम के कुलपति प्रोफेसर विनोदकुमार जैन ने मुख्य आतिथ्य ग्रहण कियास। उद्घाटन वक्तव्य डाॅ. श्रेयांशकुमार जैन ने किया, विषय प्रस्तुति  विजयनगर कृष्णदेव राय विश्वविद्यालय बल्लारी के कुलपति डाॅ. सिद्धुअलगुरु व डाॅ. सुशीलचंद्र जैन मैनपुरी ने की। हुमचा के भट्ठारक स्वस्ति श्री देवेंद्रकीर्ति भट्टारक स्वामी जी का उद्बोधन हुआ। उन्होंने अपने उद्बोधन में बताया कि 100 वर्ष में पहली बार इस परंपरा के किसी आचार्य का चातुर्मास वर्षायोग यरनाल की पवित्रभूमि पर हो रहा है।
 तदोपरांत वात्सल्य वारिधि पंचम पट्टाचार्य आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज जी महाराज का मंगल प्रवचन हुआ। आपने कहा कि चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी दक्षिण चर्या के धनी थे। वे डरे नहीं, झुके नहीं, रुके नहीं। परीषहों और उपसर्गों से वे डरे नहीं, यहां तक कि उनके विहार मार्ग को भी रोका गया, तो भी वे रुके नहीं, विपरीत परिस्थितियों में भी वे कभी झुके, नहीं आत्मकल्याण मार्ग पर बढ़ते हुए जैन संस्कृति के उन्नयन में कभी रुके नहीं। उन्होंने बताया कि आचार्यश्री शांतिसागर जी का यद्यपि 9 वर्ष की अवस्था में एक 6 वर्ष की कन्या से विवाह हो गया था। विवाह के 6 माह बाद ही उसका देहांत हो गया था। इसके बाद उन्होंने विवाह नहीं किया। उन्होंने बचपन से ही त्याग मार्ग को उन्नत बनाए रखा।
 दोपहर 2: 00 बजे से प्रथम सत्र प्रारंभ हुआ। सत्र का संचालन डाॅ. सुरेंद्र भारती ने किया। सत्र के अध्यक्ष डाॅ. शीतल चंद जी जयपुर रहे। आलेख का वचन- प्राचार्य अजीत प्रसाद मूड़बिद्री ने कन्नड़ में किया, डाॅ. टी.आर. जोडट्टी धारवाड़ ने भी कन्नड़ में अपना आलेख वाचन किया। उपरान्त डाॅ. प्रेमसुमन जी जैन-उदयपुर, पंडित भरत काला-मुंबई, डाॅ. ज्योति जैन-खतौली ने अपना आलेख वाचन हिन्दी में किया। द्वितीय सत्र 27 दिसंबर को अपराह्न 4: 00 बजे प्रारंभ हुआ। अध्यक्ष प्रोफेसर प्रेमसुमन जी उदयपुर रहे, संचालन श्री राजेंद्र जैन महावीर-सनावत ने किया। आलेख वाचन श्री रावसाहेब पाटील-सोलापुर ने तथा श्री धनदत्त बोरगांवे-मिरज ने मराठी में किया, डाॅ. पी.जी. केम्पणावर ने कन्नड़ में आलेख वाचन किया। प्रोफेसर जीवनधरकुमार-श्रवणबेलगोला ने कन्नड़ में आलेख वाचन किया। पं. आनंद प्रकाश शास्त्री-कोलकाता, डाॅ. शीतलचंद जी-जयपुर, डाॅ. कमलेश जैन- जयपुर, डाॅ. उज्ज्वला जैन - औरंगाबाद ने हिंदी में आलेख वाचन किया। 
 28 दिसंबर को प्रातः 8: 00 बजे सत्र प्रारंभ हुआ। इस सत्र की अध्यक्षता पं. अरुणकुमार जैन-सांगानेर ने तथा संचालन ब्र. जयकुमार जैन ‘निशांत’ टीकमगढ़ ने किया। इससत्र में डाॅ. महेंद्रकुमार जैन ‘मनुज’- इंदौर ने आचार्यश्री शांतिसागर जी पर तिर्यंचों कृत उपसर्ग और उसका प्रभाव विषय पर आलेख वाचन किया। तदुपरान्त श्री विजय दादा अवती-जयसिंहपुर, डाॅ. सुरेश कुमार जैन-मैसूर, डाॅ. अप्पण्णा हंजे-गदग, इंजी. दिनेश जी भिलाई, डाॅ. राजेंद्रकुमार महावीर-सनावद, डाॅ. अनुपम जैन-इंदौर के आलेख वाचन हुए। चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता डाॅ.वृषभप्रसाद जैन-लखनऊ ने तथा संचालन पं. आनंद प्रकाश जैन- कोलकाता ने किया। आलेख वाचन श्री सुषमा रोटे-कोल्हापुर, श्री सुनेत्रा नकाटे-पुणे, डाॅ.अभिजीत अलगौडर शास्त्री-मैसूर, श्री राजेंद्र पाटील शास्त्री श्रवणबेलगोला, ब्रह्मचारी राकेश भैया जी-सागर, श्री शैलेश जैन-सांगानेर जयपुर ने किया। 
संचालन श्री श्रीधर हेर वार्ड कोल्हापुर मराठी में मराठी में विनोद कुमार जैन छतरपुर वाराणसी उदयपुर शास्त्री भागवत 28 तारीख के अध्यक्ष विनोद कुमार जी महावीर शास्त्री सोलापुर मराठी
 पंचम सत्र की अध्यक्षता डाॅ. जीवंधरकुमार होतपेटे ने तथा संचालन डाॅ. शांतिकुमार मैसूर ने किया । इस सत्र में प्राचार्य श्रीधर हेरवाडे-कोल्हापुर, डाॅ. पुरंदत्त चैगुले-कराड, डाॅ.सुजाता जैन-बेंगलुरु, डाॅ. रेखा जैन, जैन विश्वविद्यालय बेंगलुरु, ब्रह्मचारी विनोद कुमार जी जैन-छतरपुर, डाॅ. अमित जैन आकाश-वाराणसी, सुमित जी जैन-उदयपुर, पंडित मनोज शास्त्री-भगवां ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। इसी तरह अन्य महानुभावों ने अन्य आठ सत्रों की विधिवत् अध्यक्षता व संचालन किया। इन सत्रों में 56 विद्वानों ने अपने आलेखों का वाचन किया। 30 दिसम्बर को समापन सत्र में सभी विद्वानों व विशेष अतिथियों का सम्मान किया गया, चारित्र चक्रवती स्मृतिग्रन्थ निकालने का संकल्प दोहराया गया और स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक महास्वामी का अभिवंदना ग्रन्थ प्रकाशित करने की उद्घोषणा की गई।
-आशा जैन-इन्दौर, परियोजनाधिकारी