पं. निर्मल जी सतना का देहावसान से एक युक का अन्त

पं. निर्मल जी सतना का देहावसान से एक युक का अन्त
दिनांक 4 जून 2020 को ख्यातिलब्ध विद्वान् पं. निर्मल जैन सतना का निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। सरस्वती पुत्र के साथ लक्ष्मीपुत्र भी थे, दानशीलता आपके व्यक्तिव का एक और गुण था। वैश्विक महामारी कोरोना के इस दौर में आपने आगे आकर देशहित में प्रधानमंत्री राहत कोष में पाँच लाख रुपये का दान स्वयं जाकर कलेक्टर को प्रदान किया था।
 पूज्य श्री गणेशप्रसाद वर्णी की बगिया के अंतिम पुष्प अपनी सुगंध विखराते हुये इस नश्वर शरीर को छोड़ कर महाप्रयाण कर गये। आप उनके अनन्य भक्त तथा सुयोग्य शिष्य थे, आपने पूज्य बाबा वर्णी जी के विचारों को अपने जीवन में अक्षरसः आत्मसात् किया था और अंत तक उनका पालन करते रहे। 
 आपके देहावसान पर श्री अखिल भा. दि. जैन विद्वत् परिषद के अध्यक्ष डाॅ. भागचंद जैन ‘भास्कर, महामंत्री डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, ने अपने और कार्यकारिणी तथा सदस्यों की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि पे्रषित की है। साथ ही अनेक आत्मीयजनों व विद्वानों व संस्थाओं ने भी श्रद्धांजलि पे्रषित की है।
 आपका जन्म 21 अप्रैल 1932 को रीठी जिला कटनी में हुआ। अल्पकाल में ही माता-पिता का वियोग होने पर बड़े भाई पं. नीरज जी सतना और बहिन सुमित्रा जी (समाधिस्थ आर्यिका माँ श्री विशुद्धमति माताजी ) के दिशा निर्देशन में आप जैन आगम का गहन अध्ययन करके प्रसिद्ध विद्वान् बन गये। आपके जाने से निश्चित रूप से विद्वत् समाज में एक रिक्तता आ गई है, वे विद्वत् समाज के सर्वमान्य और मां जिनवाणी की निस्वार्थ सेवा के प्रतिरूप थे। बड़े ही संघर्षशील जीवन को आपनेे बड़ी विनम्रता से न केवल जिया वरन अपने परिवार के सभी भाई बहिनों को भी इसकी प्रेरणा दी। बड़े भाई विद्वतश्रेष्ठ पं. नीरज जी की हर बात को पितृतुल्य आत्मसात् करना, बड़ी बहन पूज्य समाधिस्थ आर्यिका श्री विशुद्धमति माताजी के हर आदेश को सहजभाव से स्वीकार करना आपके के व्यक्तित्व को और निखार देता है।
 शाकाहार के लिये आप पूर्णतः समर्पित थे और जीवन भर इसके प्रचारक रहे। आपकी प्रेरणा से अनेकों व्यक्तियों को शाकाहार के प्रचार-प्रसार करने की प्रेरणा मिली। शाकाहार प्रचार के लिये आयोजित की गयीं विभिन्न संगोष्टियों/सेमिनार/कार्यक्रमों में आपकी उपस्थिति ही कार्यक्रम की सफलता होती थी, आपके द्वारा दिये गये तर्कयुक्त उद्बोधनों से कई लोगों ने मांसाहार का त्याग करके शाकाहार को अपनाया। इसके लिये हमने विभिन्न कार्यक्रम उनके आतिथ्य में आयोजित किये। गोमटेश्वर बाहुबली मस्तिकाभिषेक 1993 में आपके संयोजन में आयोजित विशाल शाकाहार सम्मेलन/प्रदर्शनी/प्रशिक्षणशिविर की सफलता शाकाहार/जीवरक्षा के प्रति आपके समर्पण को बयां करती है ।
 पं. निर्मल जी जैनागम के अच्छे अध्येता विद्वान थे, देश के समस्त मुनिराजों का वरदहस्त उनको प्राप्त था। कई मुनिराजों के साथ तत्त्वचर्चा कर आगम के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित करना उनको आनंदित कर देता था, आप महीनों आचार्य विद्यानंद जी, आचार्य श्री विद्यासागर जी, आचार्य श्री वर्धमानसागर, आचार्य श्री विरागसागर जी आदि जैनाचार्यों के संघ में रह कर वैयावृति करते हुये मुनिराजों को अध्यापन कराते रहते हैं। पूज्य आचार्य विशुद्धसागर जी, पूज्य मुनि श्री क्षमासागर जी अक्सर कई बार अपने प्रवचनों में आपका उल्लेख किया करते थे तथा अन्य साधुसंत भी आपके इस विनम्र व्यक्तित्व की हमेशा सराहना करते हैं।
 आप एक प्रभावी प्रवचनकार थे। हमेशा आगमोक्त और प्रमाणिक बात ही करते थे। आपकी उत्कृष्ट सरलस्वभावी प्रवचनशैली के कारण न केवल छोटे छोटे गाँव, वरन महानगरों और विदेशों तक की समाज आपको अपने यहाँ आमंत्रित करती रहती थी। आपने गृहस्थ रहते हुये श्रावक धर्म को अपने जीवन में पूर्णतः उतार लिया था, वर्ष 1991 में पूज्य मुनि श्री क्षमासागर जी से ब्रम्हचर्य व्रत लेकर उनकी पिच्छिका प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त किया था ।
 आपका पूरा परिवार उच्चशिक्षित और संस्कारवान है जिसमें पूज्य आर्यिका विशुद्धमति माताजी के द्वारा दिये गये संस्कार, बड़े दादा नीरज जी का अनुशासन और आपकी विनम्रता सदैव झलकती है। आपके बड़े पुत्र श्री सुधीर जैन प्रसिद्ध बहूमूल्य वस्तुओं के संग्रहकर्ता हैं, तथा छोटे बेटे श्री सतीश भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत अधिकारी हैं ।
 वे हमारे मामाजी थे परन्तु हमें उनका अशीष सदैव एक परिवार के मुखिया की तरह ही मिलता था, हमें बचपन से ही उनके समीप बैठने का मौका मिलता रहा, वे बहुत अच्छा बोलते थे, उनकी वाक् पटुता और प्रवचनशैली गजब की थी, जब भी उनसे मिलना होता था, उनसे ना केवल आगम की धार्मिक/सामाजिक चर्चा के साथ अपने संघर्षमय जीवन के अनुभव/संस्मरण सुनने को अवश्य मिलते थे, जो हमें ना अपने केवल व्यक्तिगत जीवन में वरन सामाजिक जीवन के लिये बहुत लाभप्रद सिद्ध हुये ।
 आदरणीय पं. निर्मल जी अब भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच में नहीं हों परन्तु उनके व्यक्तित्व निर्माण के ये गुण सदा ही उन्हें जीवन्त रखेंगे, वे अंत तक निर्मल परिणामी ही बने रहे। वीर प्रभु से हम कामना करते हैं कि ऐसे निर्मल परिणामी श्री पं. निर्मल जी को सद्गति प्राप्त हो।
चरणों में सादर नमन ! विनम्र श्रद्धांजलि !!
- सुरेश जैन ‘मारौरा’, इंदौर