दुराचार दूर होता है ब्रह्मचर्य अनुपालन से
(पर्यूषण पर्व का अन्तिम दिवस उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म)

दुराचार दूर होता है ब्रह्मचर्य अनुपालन से

-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन 'मनुज', इन्दौर, 9826091247



उत्तम ब्रह्मचर्य है आत्मा में आचरण करनाआत्मा में विचरण करना ही ब्रह्मचर्य है। ब्रह्मचर्य तो आत्मा के कल्याण का मार्ग है, साधन हैसादगी पूर्ण जीवन जीना, राग भाव का ना होना और इंद्रियों से नाता तोड़कर अपने आप को ध्यान के लिए तैयार कर लेना ही वास्तव में ब्रह्मचर्य धर्म है। ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करने से शक्ति का संचार होता है, स्मरण शक्ति बढ़ती है और चेहरे पर चमक आती है। ब्रह्मचर्य धर्म के निर्वाह के लिए इंद्रियों पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। स्त्री के अंग, उपांग आदि को देखता हुआ भी जो ज्ञानी विकार को प्राप्त नहीं होता है उसको ब्रह्मचर्य व्रत है। कितने सारे शीलवती स्त्रियों के उदाहरण आते हैं। चेलना, चंदना, अनंतमति आदि बहुत सारे नाम आते हैं। वर्तमान में भी ऐसी स्त्रियां हैं जो दृढ़ प्रतिज्ञ हैंब्रह्मचर्य में प्रसिद्ध हैं सुदर्शन सेठ। महावीर भगवान्, पार्श्वनाथ भगवान के लिए भी बहुत प्रयास किया गया कि इनका भी विवाह हो जाए। लेकिन वे भी अपने शील से, स्वभाव से विचलित नहीं हुए। नेमिनाथ भगवान् का तो प्रसिद्ध है कि उनका तो विवाह का कार्यक्रम भी चालू हो गया था। लेकिन फिर भी जब आत्म स्वरूप का भान होता है, वैराग्य होता तो सब कुछ तुच्छ लगने लगता है। उत्तम ब्रह्मचर्य के धारक तो वे हैं तो असिधार व्रत का पान करते हैं।


असिधार ब्रह्मचर्य व्रत का उल्लेख और कथानक प्रथमानुयोग के ग्रन्थों में आता है जीवानी- जल झानने पर छन्ने में बचा हुआ जहां से पानी लिया है वहीं पहुचाना होता है जिससे जीव हिंसा न हो। एक ग्रहस्थ से वह जीवानी जल नीचे दुल जाता है। इस गल्ती का प्रायश्चित्ता मांगने वह मुनिराज के पास जाता है। मुनिराज कहते हैं जो व्यक्ति या दंपति असिधार ब्रह्मचर्य व्रत कर रहे हों उन्हें भोजन करवायेंउसने कहा मुझे पता कैसे चलेगा कि अमुक व्यक्ति असिधार ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहा है। मुनिराज ने कहा अपने नगर और आस पास के गांवों के लोगों को वारी वारी से अपने चंदोवे के नीचे बैठाकर भोजन करवाएं, जिसके भोजन करने पर तुम्हारे यहां बंधा हुआ चंदोबा सफेद हो जायगा समझना वह व्यक्ति या युगल असिधार ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहा हैविशेषतः कच्चे घरों में जहां भोजन बनता है वहां चूल्हा और भोजन करने के स्थान के ऊपर कपड़ा बांधते थे जिससे भोजन में छप्पर से किसी तरह की गंदगी या जीव-जंतु न गिर जायें उस बंधे हुए कपड़े को चंदोबा कहते है।


उस व्यक्ति ने लोगों को वारी वारी से भोजन कराना प्रारंभ कियाकुछ महिनों बाद एक युगल ने भोजन किया और चंदोबा गंदले से सफेद हो गया तब उस युगल से किसी तरह पूछा गया कि मुनि महाराज ने जो कहा था वह सही हुआ हैकृपया बतायें आप कैसा असिधार व्रत कर रहे हैंउन्होंने इससे पहले किसी को कुछ नहीं बताया था अपने घर के लोगों को भी नहीं मुनिराज के वचन होने से उन्होंने बताया कि उनके विवाह के पहले से दोनों ने अपने अपने घर त्यागियों से व्रत ले लिए थे। विवाहोपरान्त जब मिलन का समय आया तो उस पुरुष ने कहा कि मेरा तो प्रतिमाह के शुक्लपक्ष का ब्रह्मचर्य व्रत है। कुछ दिन बाद कृष्णपक्ष आयेगा तब मिलन हो सकेगा। कृष्णपक्ष में जब मिलन का समय आया तो उसकी पत्नी ने कहा कि मेरा प्रतिमाह कृष्णपक्ष में ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने का नियम हैदोनों ने कहा कोई बात नहीं हम अपना अपना व्रत पालन करेंगेउन्होंने व्रत की बात किसी को बताई नहींवे ऐसे ही दृढ़ता से पालन कर रहे थे। ये है असिधार व्रत, कि पति-पत्नी साथ होते हुए भी मिलन नहीं कर रहे थे।


आचार्य श्री सुनीलसागर मुनिमहाराज ने अपने प्रवचन में महाराज शिवाजी का एक प्रसंग सुनाया था। ऐतिहासिक घटना है जब मुम्बई के प्रान्त पर सामन्तों ने हमला किया। तो वहां से उनको दो चीजें हाथ लग गई और वहां का जो बादशाह था वो तो भाग गया और यहां शिवाजी के लोगों के हाथ में सबसे सुंदर बेगम आ गईऔर कुरान भी मिला। बड़े खुश होकर के लेकर आये। सबने सोचा कि दोनों चीजों को देखकर छत्रपति शिवाजी महाराज बड़े खुश हो जायेंगे। उनके सामने लाया गयाछत्रपतिजी ने पूछा- इस पालकी में क्या है? उन्होंने कहा- छत्रपतिजी! इसमें दुनिया की सबसे सुंदर चीज है। उन्होंने देखा तो बेगम थी। छत्रपति शिवाजी ने कहा- तुमको शर्म नहीं आती है। अरे! हमने देश सेवा का व्रत लिया है। हमने अपनी माता-बहनों की रक्षा का व्रत लिया है, इसका मतलब ये तो नहीं कि हम दूसरों के साथ अत्याचार करें, दूसरों की माँ-बहन को बुरी नजर से देखें । हमें कम से कम तुमसे ये आशा नहीं थीतुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। सब को जोरदार फटकार लगाई, आइंदा ऐसा काम नहीं करना। अरे! दूसरों के शास्त्र का भी सम्मान करना सीखो। दूसरे की माँ बहन का सम्मान करना सीखोऔर उनकी उदारता देखो, उस सुंदर स्त्री के पास गये। उम्र में भले ही उनसे कम थीलेकिन हाथ जोड़कर उनके सामने गये। पहले तो वो डर ही गई, पता नहीं अभी क्या होने वाला है। उन्होंने कहा क्षमा करना, आप वास्तव में सुंदर हैं। ऐसे कहा तो उसको एक और तरह का भय पैदा हुआ। उन्होंने कहा- वास्तव में आप सुंदर हैं, लेकिन आप मेरी माँ होती तो मैं भी आपके जैसा सुंदर पैदा होता। छत्रपतिजी के विचार देखो कितने अच्छे हैं।


परनारी पैनी छुरी, तीनों ओर से खाए।

धन छीने यौवन हरे, मरे नरक ले जाए।।